चित्र गूगल क्लिप आर्ट के सौजन्य से
हमारे विचारों और वास्तविकता में धरती आकाश की सी भिन्नता होती है, हम कल्पना कुछ और करते हैं और घटता कुछ और ही है| संकल्प किया था कि हर साप्ताह ब्लॉग में नयी सामग्री डालूंगी, और यहाँ, नटखट १ और २ के विद्यालय आरम्भ होते ही मेरे सारे अनुष्ठान क्रमशः लुप्त हो गए और मैं विद्यालयों के रिक्शावालों की भाँती १ और २ के आवागमन का संचालन ही करती रह गयी |
फिर, केवल वही होता तो ठीक था , किन्तु, विद्यालय में प्रतिदिन प्रातः श्रीमती अ, ब और स का सामना हो ही जाता है, श्रीमती अ ज़रूर कहेंगी 'मेरा बेटा स्कूल के पश्चात तीन तीन खेलों में हिस्सा ले रहा है',पीछे से श्रीमती ब फ़ौरन लपकेंगी ,' मेरी बेटी तो खेलो के अतिरिक्त नृत्य और गायन में भी कुशल हो गयी है,' यह सब सुन श्रीमती स कहाँ पीछे रहने वाली हैं गर्व से बोलेंगी ',यह सब तो ठीक है पर मेरा बेटा तो इन सब के साथ कोचिंग भी जाता है और इसीलिए अपनी कक्षा में गणित में सर्वश्रेष्ट है तुम भी अपने बच्चों को इसी कोचिंग में डालो | '
इस वार्तालाप में मैं बिलकुल हैरान परेशान सी रह जाती हूँ, कि इस निरर्थक स्पर्धा में मेरे दोनों नटखट कहाँ तक जायेंगे क्योंकि वह तो इस दौड़ में दौड़ ही नहीं रहे हैं | इन्ही बादलों से अपना मन घेरे मैं विद्यालय से घर कि ओर रवाना होती हूँ और सही गलत का नाप तौल करती घर के मार्ग में ही इस दुविधा का उपाय ढूँढने का प्रयत्न करती हूँ |
किन्तु, श्रावण मास के चन्द्रमाँ कि तरह मेरी लेखनी आज बादलों को पार करके डेढ़ माह पश्चात फिर बाहर निकल ही आयी और मुझसे अधिक, यह उसी का प्रण है कि मैं पुनः लिख रही हूँ |
हाल ही में मैंने मुंशी प्रेमचंद जी की गोदान फिर से पढ़ी , पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे होरी धनिया, गोबर के साथ हम भी उनके टूटे से घर के बाहर खड़े होकर गाँव के राजा, साहूकारों, ग्वालों और रिश्तेदारों के तमाशे देख रहे हैं श्रीमती अ, ब, और स और मैं स्वयं, हम सब प्रेमचंद के चरित्र ही तो हैं | जो तब सत्य था वही आज भी सत्य है |
प्रेमचंद अपने पाठकों को किंकर्तव्यविमूढ़ कर ऐसी कथा कहतें हैं की पाठक का यह जानना कठिन ही जाता है की वह पाठक है, की कथा का एक चरित्र, होरी है , धनिया है की स्वयं कथाकार |
प्रेमचंद अपने पाठकों को किंकर्तव्यविमूढ़ कर ऐसी कथा कहतें हैं की पाठक का यह जानना कठिन ही जाता है की वह पाठक है, की कथा का एक चरित्र, होरी है , धनिया है की स्वयं कथाकार |
उन्नीसवी शताब्दी में जो गाँवों के गरीब किसानो की अवस्था और ज़मींदारों साहूकारों पंडितों और रईस सोसाइटी के कर्ताधर्ताओं पर मुंशी प्रेमचंद ने व्यंग्य किया है , उस कटाक्ष की छवि मदर गूस की एक कविता में भी मिलती है.किन्तु मेरी इन बातों की इस कविता पर सिर्फ एक छाया ही है, क्यूंकि कविता बहुत मज़ेदार है और मुझे इसे सुन कर हमेशा हँसी आ ही जाती है |
कविता अंग्रेज़ी में ऐसी है ,
Rub-a-dub-dub!
Three men in a tub,
And who do you think they be,
The butcher, The baker, The candlestick maker,
turn 'em out ! knaves all three !
धम धम धड़े !
तीन आदमीं बाल्टी में,
वो कौन है सभी?
कसाई, और लाला, मोमबत्ती बनानेवाला
बाहर निकालो उन्हें !
बदमाश हैं सभी !
क्यों आ गयी ना हँसी ? मेरे स्त्रोत्र अनुसार, कविता कि किसी धुन का कहीं उल्लेख तो नहीं है, क्योंकि अधिकतर यह कविता पढ़ी ही जाती है पर बच्चों आप अपनी धुन बनाकर गा सकते हैं और याद रहे की 'धम धम धड़े' और ' बाहर निकालों उन्हें बदमाश हैं सभी ' पर खूब ज़ोर लगा कर, वज़न डालकर कहो , तभी इस कविता का असली रस उभर कर आएगा |
इसके अतिरिक्त आपके लिए कार्य यह है कि मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में और जानो और पंच परमेश्वर व मंत्र पढो |
अगली बार तक
आपकी
वैष्णवी