चूहे !
आज फिर इस ओर आना हुआ, तो देखा कि दो वर्ष बीत गए, कि जब मैंने मोमबत्ती बनाने वाला लिखी थी। हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में इतने व्यस्त हो जाते हैं की अपनी रुचियों के लिए समय जुटा पाना ही मुश्किल हो जाता है। बैरहाल यह बात मैं स्वयं के लिए नहीं कह सकती, क्योंकि सत्य तो यह होगा की मेरी रुचियाँ इतना भिन्न भिन्न हैं की मैं सबको अपना समय नहीं दे पाती । इसका हरगिज़ यह अर्थ नहीं हैं कि मुझे लिखना कम पसंद है, बल्कि यह कि मैं लिखने के लिए समय न निकाल पाने के कारण कभी कभी दुखी हो जाती हूँ ।
नटखट १ व २ की अटखेलियाँ इतनी बढ़ गयीं हैं की मेरा प्रतिदिन उनको व्यवस्थित करने में ही बीत जाता है। व्यंग कि बात यह है की श्रीमती अ, ब और स के वचनों को पीछे छोड़ने के प्रयास में पिछले दो सालों में स्वयं को उन्ही के स्वभाव में परिवर्तित होता पा रही हूँ। परमेश्वर जाने की २ वर्ष की आयु में जितना सही गलत का अनुमान था शायद उतना करना भी अब मुझे व्यथित कर देता है, अर्थ यह, की अब मैं समझ रही हूँ की हर व्यक्ति का सत्य उसका अपना दृष्टिकोण है, तो गलत क्या है? शायद इसी जानकारी की प्राप्ति के बाद बुद्ध का धर्मं चक्र प्रवर्तन हुआ। बात यह नहीं है की मुझमें इतनी क्षमता है की उनके जैसे सिध्ह पुरुष से अपनी तुलना कर सकूं, बात यह है कि वह क्या ढूँढने निकले थे अब शायद थोड़ा ज्ञान होता है ।
हम सब अपने उज्जवलित चक्शुओं के पीछे रहते अन्धकार से लगातार जूझ रहे हैं । जब मैं अपने दोनों नटखटों की बाल क्रीड़ाओं को स्तब्ध होकर देखती हूँ, तो ऐसे प्रतीत होता है की जैसे सारे सत्यों का ज्ञान तो बच्चों को ही है। हम तो दृष्टि होते हुए भी दृष्टिहीन हैं।
आँखों में रौशनी की बात हो तो मदर गूस की एक बहुत ही प्यारी और प्रचलित कविता है Three Blind Mice
Three blind mice, Three blind mice,
See how they run, See how they run,
They all ran after the farmers wife,
Who cut off their tails with a carving knife,
Did ever you see such a thing in your life,
As three blind mice.
तीन अंधे चूहे, तीन अंधे चूहे,
देखो कैसे कूदें, देखो कैसे कूदें,
किसान की बीवी के पीछे भागे,
जिसने काटीं दुम उनकी चाकू लाके,
देखीं हैं कभी तुमने ऐसे बातें,
जैसे तीन अंधे चूहे ।