Tuesday, October 1, 2013


                                       चूहे !



आज फिर इस ओर  आना हुआ, तो देखा कि  दो वर्ष बीत गए,  कि जब मैंने मोमबत्ती बनाने वाला लिखी थी। हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में इतने व्यस्त हो जाते हैं की अपनी रुचियों के लिए समय जुटा पाना  ही मुश्किल हो जाता  है।  बैरहाल  यह बात मैं स्वयं के लिए नहीं कह सकती, क्योंकि सत्य तो यह होगा की मेरी रुचियाँ इतना भिन्न भिन्न हैं की मैं सबको अपना समय नहीं दे पाती । इसका हरगिज़ यह अर्थ नहीं हैं कि  मुझे लिखना कम पसंद है, बल्कि यह  कि  मैं लिखने के लिए समय न निकाल पाने के कारण कभी कभी दुखी हो जाती हूँ ।

नटखट १ व २ की अटखेलियाँ इतनी बढ़ गयीं हैं की  मेरा  प्रतिदिन उनको व्यवस्थित करने में ही बीत जाता है। व्यंग  कि  बात यह है की श्रीमती अ, ब  और स के वचनों  को पीछे छोड़ने के प्रयास में पिछले दो सालों में  स्वयं को उन्ही के  स्वभाव में परिवर्तित होता  पा रही हूँ।  परमेश्वर जाने की २ वर्ष की आयु में जितना  सही गलत का अनुमान था शायद  उतना करना  भी अब मुझे व्यथित कर देता है, अर्थ यह, की अब मैं समझ रही हूँ की हर व्यक्ति का सत्य उसका अपना दृष्टिकोण है, तो गलत क्या है? शायद इसी जानकारी की प्राप्ति के बाद बुद्ध का धर्मं चक्र प्रवर्तन हुआ। बात यह नहीं है की मुझमें इतनी क्षमता है की उनके जैसे  सिध्ह पुरुष से अपनी तुलना कर सकूं, बात यह है कि  वह क्या ढूँढने निकले थे अब शायद थोड़ा  ज्ञान होता है ।

 हम सब  अपने उज्जवलित चक्शुओं  के पीछे रहते अन्धकार से लगातार जूझ रहे  हैं । जब मैं अपने दोनों नटखटों  की बाल क्रीड़ाओं  को स्तब्ध होकर देखती हूँ, तो ऐसे प्रतीत होता है की जैसे सारे सत्यों का ज्ञान तो बच्चों को ही है। हम तो दृष्टि  होते हुए  भी दृष्टिहीन  हैं।

आँखों में रौशनी की बात हो तो मदर गूस की एक बहुत ही प्यारी  और प्रचलित  कविता है  Three  Blind  Mice

Three blind mice, Three blind mice,
See how they run, See how they run,
They all ran after the farmers wife,
Who cut off their tails with a carving knife,
Did ever  you  see such a thing in your life,
As  three blind mice.


तीन अंधे चूहे,  तीन अंधे चूहे,

देखो कैसे कूदें,  देखो कैसे कूदें,

किसान की बीवी के पीछे भागे,

जिसने काटीं दुम उनकी चाकू लाके,

देखीं हैं कभी  तुमने ऐसे बातें,

जैसे तीन अंधे चूहे । 

Sunday, October 2, 2011

मोमबत्ती बनानेवाला



चित्र गूगल  क्लिप  आर्ट  के  सौजन्य से 
         
                        हमारे विचारों और वास्तविकता में धरती आकाश की सी भिन्नता होती है, हम कल्पना कुछ और  करते    हैं और घटता  कुछ और ही है|  संकल्प किया था कि हर साप्ताह ब्लॉग में नयी सामग्री डालूंगी, और यहाँ,  नटखट  १ और २ के विद्यालय आरम्भ होते  ही मेरे  सारे अनुष्ठान क्रमशः लुप्त  हो गए और मैं विद्यालयों के रिक्शावालों की भाँती १ और २ के आवागमन का संचालन ही करती रह गयी |
                     फिर, केवल वही होता तो ठीक था , किन्तु, विद्यालय में प्रतिदिन प्रातः श्रीमती अ, ब और स  का सामना हो ही जाता है, श्रीमती अ ज़रूर  कहेंगी   'मेरा बेटा स्कूल के पश्चात तीन तीन खेलों में हिस्सा ले रहा है',पीछे  से श्रीमती ब फ़ौरन  लपकेंगी ,' मेरी बेटी तो खेलो के अतिरिक्त नृत्य और गायन में भी कुशल हो गयी है,' यह सब सुन श्रीमती स कहाँ पीछे रहने वाली हैं  गर्व  से बोलेंगी  ',यह सब तो ठीक है पर मेरा बेटा तो इन सब के साथ कोचिंग भी जाता है और इसीलिए  अपनी कक्षा में गणित में सर्वश्रेष्ट है तुम भी अपने बच्चों को इसी कोचिंग में डालो  | '
                     इस  वार्तालाप में मैं बिलकुल हैरान परेशान सी रह जाती हूँ,  कि  इस निरर्थक स्पर्धा में मेरे दोनों नटखट कहाँ तक जायेंगे क्योंकि वह तो इस दौड़ में  दौड़ ही नहीं रहे हैं | इन्ही बादलों से अपना  मन घेरे मैं विद्यालय से घर कि ओर रवाना होती हूँ और सही गलत का नाप तौल करती घर के  मार्ग  में ही इस दुविधा  का उपाय ढूँढने का प्रयत्न करती हूँ |
  किन्तु, श्रावण मास  के चन्द्रमाँ कि तरह मेरी लेखनी आज बादलों को पार करके डेढ़ माह पश्चात फिर बाहर निकल ही  आयी और मुझसे अधिक, यह उसी का प्रण है कि मैं पुनः लिख रही हूँ |

                   हाल  ही में मैंने  मुंशी प्रेमचंद जी की गोदान फिर से पढ़ी , पढ़ कर  ऐसा  प्रतीत हुआ  जैसे होरी  धनिया, गोबर के साथ हम भी उनके टूटे से घर के बाहर खड़े होकर गाँव के राजा, साहूकारों, ग्वालों  और रिश्तेदारों के तमाशे  देख रहे हैं  श्रीमती अ, ब, और स और मैं स्वयं,  हम सब प्रेमचंद के चरित्र ही तो हैं | जो तब सत्य  था वही आज भी सत्य है |
                 प्रेमचंद अपने पाठकों को किंकर्तव्यविमूढ़ कर  ऐसी कथा कहतें हैं की पाठक का  यह जानना  कठिन ही जाता  है की वह पाठक है, की कथा का एक चरित्र,  होरी है , धनिया है की स्वयं  कथाकार |
                उन्नीसवी शताब्दी में जो गाँवों के गरीब किसानो की अवस्था और ज़मींदारों  साहूकारों पंडितों  और रईस  सोसाइटी  के कर्ताधर्ताओं  पर  मुंशी प्रेमचंद ने व्यंग्य  किया है , उस कटाक्ष की  छवि  मदर गूस  की एक कविता में  भी  मिलती है.किन्तु मेरी इन  बातों की इस कविता पर सिर्फ एक छाया ही है, क्यूंकि  कविता बहुत  मज़ेदार है  और मुझे इसे  सुन कर हमेशा हँसी आ ही जाती है | 

 कविता अंग्रेज़ी में ऐसी  है ,

Rub-a-dub-dub!
Three men in a tub, 
And who do you think they be,
The butcher, The baker, The candlestick maker,
turn 'em out !  knaves all three !

                                                                               
हिंदी में,                                                            चित्र  Roberta Baird

धम धम धड़े !
तीन आदमीं बाल्टी में, 
वो कौन है सभी?
कसाई, और  लाला, मोमबत्ती बनानेवाला 
बाहर निकालो उन्हें !
बदमाश हैं सभी ! 

 क्यों आ गयी ना हँसी ?  मेरे स्त्रोत्र  अनुसार, कविता कि किसी धुन का कहीं  उल्लेख तो  नहीं है, क्योंकि अधिकतर यह कविता पढ़ी ही जाती है पर बच्चों आप अपनी धुन बनाकर गा सकते हैं और याद रहे की  'धम धम धड़े' और ' बाहर निकालों उन्हें बदमाश हैं सभी ' पर खूब ज़ोर  लगा कर,  वज़न डालकर   कहो , तभी इस कविता का असली  रस उभर कर आएगा |

इसके अतिरिक्त आपके लिए कार्य यह है कि मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में और जानो और पंच परमेश्वर व मंत्र पढो |

 अगली बार तक

 आपकी

 वैष्णवी



कापीरआईट  ©२०११ वैष्णवी मिश्रा. All Rights Reserved


Monday, August 15, 2011

मछलियाँ

     
      आज, मेरे  जीवन के एक और मोड़ का एक और सवेरा  है | प्रातः काल से ही मैं और मेरे दोनों नटखट इस  नयी उमंग की प्रतीक्षा में हैं | इसी ख़ुशी के चलते  मैं  फिर से कलम लेकर बैठ गयी और साथ में नटखट न0. १ भी मेरी कुर्सी के पीछे चढ़ने आ गए | सिर्फ यहाँ तक होता तो ठीक था, लेकिन  इन  साहब को तो उछल-कूद की पोटली खोलनी थी, सो मैंने डांट डपट कर  उनको कमरे से निकासित कर दिया और एकांत की याचना लिए फिर अपनी लेखनी लेकर काम शुरू किया | लेकिन महादेवी वर्मा के गिल्लू कि तरह, नटखट न०.१ फिर से मेरा ध्यान भंग करने पधार आये  और  मुझे अन्यमनस्क सा कर, किसी और अखरोट की तलाश में   अंततः चले गए|

    मेरी वर्तमान मानसिक दशा में सिर्फ  मछली पकड़ने  जैसा निश्चल काम ही किया जा सकता है | तो आज एक काम करते हैं, मछली ही पकड़ते हैं ...हमारी आज की कविता के द्वारा |

यह कविता सब बच्चों को शायद पता न हो  लेकिन इस वजह  से वह इसको और रूचि लेकर पढ़ सकते हैं  और
हिंदी व अंग्रेजी दोनों मैं याद कर सकते  हैं |

 अंग्रेजी में ऐसे बोलो :

One two three four five,
Once I caught a Fish alive,
Six seven eight nine ten,
Then I let it go again,

Why did you let it go?
'Cause it bit my finger so!
Which finger did it bite?
The little finger on the right.

 अब हिंदी में:

एक दो तीन चार पांच,
मैंने पकड़ी मछली आज,
छ: सात आठ नौ दस,
फिर पानी में छोड़ा बस,
                                            
क्यूँ तुमने छोड़ा उसको?
काट ली मेरी ऊँगली जो!
कौन सी ऊँगली काट ली!
यह छोटी वाली हाथ की |

है न अच्छी कविता ?

 मदर गूस की कितनी ही और कवितओं की तरह इस कविता की उपज इतिहास  के पन्नो से नहीं हुई है,  इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है की यह कविता पुरानी नहीं है बल्कि इसका पहला प्रकाशन { जानकारी अनुसार} करीब १८८८  में हुआ था पर इसे  केवल बच्चों के अध्यापन के स्त्रोत्र के रूप में बनाया गया था | जिस्से हमारे  नन्हे मुन्ने अपनी गिनती रुचिकर ढंग से सीख सकें|

इस कविता की धुन जानने के लिए इस लिंक पर जाएँ  लेकिन याद रहे मम्मी पापा की अनुमति से और उनके साथ |
http://www.youtube.com/watch?v=FKlIQADmW7o&feature=related

 मेरे एक पाठक ने  एक बहुत  अच्छा सुझाव दिया है कि मैं इन कविताओं के अलावा  हिंदी  कि और कविताओं का  भी  इस ब्लॉग के द्वारा  आदान प्रदान करूँ जिससे कि हमारे आधुनिक बाल्य इनको जान सकें और सीख सकें| मेरा मेरे सभी पाठकों से निवेदन है की वह अपने बचपन की  हिंदी कवितायेँ इस ब्लॉग की         
टिप्पणिओं  [कमेंट्स] के द्वारा सबसे बाटें|
 आज मैं आप सब से एक ऐसी कविता बाँट रहीं हूँ जो तत्काल ही  मुझे मेरे बचपन में ले जाती है और वह कविता भी मछली से प्रेरित है| क्या आपने अनुमान लगा लिया ?


मछली जल की है रानी,
जीवन उसका है पानी,
हाँथ लगाओगे डर जाएगी, 
बाहर निकालोगे मर जाएगी |

आज के लिए इतना ही,

अगली बार तक,

आपकी,

वैष्णवी |


 बच्चों के लिए कार्य:

 पुस्तकालय जा कर महादेवी वर्मा के बारे में और जानो और गिल्लू  पढो ||
  
सारे चित्र इन्टरनेट के सौजन्य से |




Friday, July 29, 2011

तारे

                             जब रोज़ मैं अपने दोनों बेटों की सुलाने ले जाती  तो हम सब मिलकर नींद की प्यार भरी गोद में झूलने से पहले  एक खेल खेलते |  खेल खेल  ही में हमने  इतनी कविताओं का हिंदी  अनुवाद कर दिया की  एक किताब भरने का सामान हो गया |  
 काफी सारी  कविताएँ आप सबने बहुत सुनी  होंगी और बहुत सी, बिलकुल ही नहीं | मेरा यही प्रयत्न रहेगा की आप सब  को मैं इनके हिंदी व अंग्रेजी, दोनों अनुवादों से परिचित करा सकूं जिससे  आप  इनको आसानी से पहचान सकें|

सबसे पहली  कविता वह है जिसे आप सब बच्चे  बहुत करीब से जानते  हैं और प्यार करतें हैं | शायद आपकी भी सबसे पहली कविता |

Twinkle twinkle little star,
How I wonder what you are,
Up , above the world so high,
Like a diamond in the sky.

Twinkle twinkle little star,
How I wonder what you are.
                                                                             
      अब  हिंदी में !                                                          

टिमटिम  टिमटिम  तारे राम,
ऊपर बैठे क्या है काम ?
आसमान में चमके हो , 
हीरे जैसे दमके हो |

टिमटिम टिमटिम तारे राम, 
ऊपर बैठे क्या है काम ?


जिन बच्चों को इस गाने की धुन नहीं आती है वह इस नीचे दीये लिंक पर जाएँ पर मम्मी पापा से पूछ कर |  यहाँ आपको इस कविता का विडियो दिखेगा जिससे  आप धुन सीख सकते हैं और फिर हिंदी कविता के शब्द इस धुन में पिरो कर  गा सकते हैं||

इस कविता के बारे में और जानने के लिए या फिर इसके इतिहास के लिए  इस नीचे दिए लिंक पर जाएँ|


तो  अब शुरू करो खेल!  

अगली बार तक  ,

आपकी,

वैष्णवी

कापीरआईट  ©२०११ वैष्णवी मिश्रा. All Rights Reserved